This one’s for the footloose girl
That that lopsided grin might unfurl
A little tickle for the start
To funny-up the worry wart
दर्ज़ी के दर पर
लिए एक मीटर आस फिर उसी दर पर
तौबा कर निकले थे जहाँ से कल को
कल के चाक-ए-उम्मीद को कर के रफू
सब्र का देके नया सा अस्तर
होटों पे सी कर हसीं की गोटी
पोहुंचे हैं फिर उसी दर्ज़ी के दर पर
जहाँ हुआ था एक कुरते का कत्ल
और मिली थी एक सलवार की लाश
जहाँ मेरी भी एक नस फूटी थी
फिर उसी दर्ज़ी के दर पर
देखो तो और चारा भी क्या है?
हर दर पे सद-रंग सितम सिलतें हैं
यहाँ से लाश तो बर-आमद हुई
कहीं कहीं थो वह भी नहीं मिलतें हैं
गुस्से को कर के दामन का गांठ
पोहुंचे हैं फिर उसी दर्ज़ी के दर पर
1 comment:
haha... arre bhai, darzee ki bhi marzee hoti hai ke nahin?
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