Friday, May 23, 2008

Darzee ke dar par

This one’s for the footloose girl

That that lopsided grin might unfurl

A little tickle for the start

To funny-up the worry wart


दर्ज़ी के दर पर


लिए एक मीटर आस फिर उसी दर पर

तौबा कर निकले थे जहाँ से कल को

कल के चाक-ए-उम्मीद को कर के रफू

सब्र का देके नया सा अस्तर

होटों पे सी कर हसीं की गोटी

पोहुंचे हैं फिर उसी दर्ज़ी के दर पर



जहाँ हुआ था एक कुरते का कत्ल

और मिली थी एक सलवार की लाश

जहाँ मेरी भी एक नस फूटी थी

फिर उसी दर्ज़ी के दर पर



देखो तो और चारा भी क्या है?

हर दर पे सद-रंग सितम सिलतें हैं

यहाँ से लाश तो बर-आमद हुई

कहीं कहीं थो वह भी नहीं मिलतें हैं

गुस्से को कर के दामन का गांठ

पोहुंचे हैं फिर उसी दर्ज़ी के दर पर




1 comment:

footloose said...

haha... arre bhai, darzee ki bhi marzee hoti hai ke nahin?