सरकार ने कल न्योता भेजा
कहलवा के भेजा के अकेले जाना है
न्योते में कुछ असाध्य शर्तें भी थीं
साथ में कुछ भी नहीं ले जाना है, और कुछ भी नहीं।।
अब इस कुछ भी नहीं को कहाँ ढूँढूँ ?
क्या होता है ये कुछ भी नहीं?
और इससे भी अव्वल सवाल -
ख़ुद को कहाँ ढूँढूँ?
सरकार के न्योते के बाद
इस पर गहरा विचार किया
मैं जहाँ भी गई हूँ अब तक
मैंने अपने शरीर को पहुँचाया है
अपने विचारों को किसी सावन के मोर की तरह
फैलाके, सजाकर ले जाती रही
अपने भावनाओं को एक गठ गठरी में बांध
अपने अस्तीत्व को वज़नदार करती रही
पर अबके, सरकार के दावत पे मैं जाऊं,
तो क्या वह पहचानेंगे मुझे?
मगर कैसे?
इन सब के बग़ैर तो
मैं कुछ भी नहीं
मैं... कुछ भी नहीं
मैं ही तो हूँ... कुछ भी नहीं
मुझे ही तो जाना हैं
सरकार का न्योता है
जाना तो पड़ेगा ही
चारा - कुछ भी नहीं
कहलवा के भेजा के अकेले जाना है
न्योते में कुछ असाध्य शर्तें भी थीं
साथ में कुछ भी नहीं ले जाना है, और कुछ भी नहीं।।
अब इस कुछ भी नहीं को कहाँ ढूँढूँ ?
क्या होता है ये कुछ भी नहीं?
और इससे भी अव्वल सवाल -
ख़ुद को कहाँ ढूँढूँ?
सरकार के न्योते के बाद
इस पर गहरा विचार किया
मैं जहाँ भी गई हूँ अब तक
मैंने अपने शरीर को पहुँचाया है
अपने विचारों को किसी सावन के मोर की तरह
फैलाके, सजाकर ले जाती रही
अपने भावनाओं को एक गठ गठरी में बांध
अपने अस्तीत्व को वज़नदार करती रही
पर अबके, सरकार के दावत पे मैं जाऊं,
तो क्या वह पहचानेंगे मुझे?
मगर कैसे?
इन सब के बग़ैर तो
मैं कुछ भी नहीं
मैं... कुछ भी नहीं
मैं ही तो हूँ... कुछ भी नहीं
मुझे ही तो जाना हैं
सरकार का न्योता है
जाना तो पड़ेगा ही
चारा - कुछ भी नहीं